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Top Short Moral Story In Hindi For Class 10 नैतिक कहानी

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    Top Short Moral Story In Hindi For Class 10 नैतिक कहानी

    Short Moral Story In Hindi For Class 10:- Here I’m sharing the top  Short Moral Story In Hindi For Class 10 For Kids which is very valuable and teaches your kids life lessons, which help your children to understand the people & world that’s why I’m sharing with you.

    Top 27 Short Moral Story In Hindi For Class 10

    यहां मैं बच्चों के लिए हिंदी में नैतिक के लिए शीर्ष कहानी साझा कर रहा हूं जो बहुत मूल्यवान हैं और अपने बच्चों को जीवन के सबक सिखाते हैं, जो आपके बच्चों को लोगों और दुनिया को समझने में मदद करते हैं इसलिए मैं आपके साथ हिंदी में नैतिक के लिए कहानी साझा कर रहा हूं।

    1. नासमझ मुल्ला (Moral Stories In Hindi For Class 10)

    एक बार मुल्ला अपने पुत्र और गधे के साथ कहीं जा रहे थे। थोड़ी देर बाद पुत्र को थकता देख मुल्ला ने उससे कहा, “पुत्र, तुम थक गए हो। तुम गधे पर बैठ जाओ।”

    पुत्र गधे पर बैठ गया और मुल्ला साथ-साथ चलने लगे। थोड़ी ही दूर जाने के बाद उन्होंने सड़क किनारे कुछ लोगों को बैठकर बातें करते देखा।

    उन्हें देखकर एक ने कहा, “अरे, देखो तो… यह लड़का कितना स्वार्थी है… स्वयं तो गधे पर बैठा है और बेचारा बूढ़ा बाप इस गर्मी में पैदल चल रहा है। “

    साथ बैठे लोगों ने भी हाँ में हाँ मिलायी, “लड़के के दिल में बड़ों की इज्जत नहीं है और न ही उसे अपना कर्तव्य पता “

    मुल्ला के पुत्र को बहुत बुरा लगा। उसने कहा, “पिताजी, आप गधे पर बैठिए, मैं पैदल चल लूंगा।” मुल्ला राजी होकर गधे पर बैठ गया और पुत्र साथ-साथ चलने लगा।

    थोड़ी दूर पर फिर गाँव वाले बैठे बातें करते मिले। उन्हें जाता देखकर एक व्यक्ति ने कहा, “वह आदमी कितना निर्दयी है, स्वयं तो आराम से गधे पर बैठा है और लड़के को पैदल चला रहा है। “

    साथ बैठे लोगों ने उसका साथ दिया। मुल्ला ने यह सुनकर पुत्र से कहा कि हम दोनों गधे पर बैठ जाते हैं।

    दोनों गधे पर बैठकर चलने लगे। मुश्किल से थोड़ी ही दूर पर कुछ और गाँव वाले बैठे मिले। उन्होंने इन्हें देखकर कहा, “ये दोनों कितने निष्ठुर हैं… बेचारे गधे पर दोनों चढ़कर बैठे हैं, इन्हें तो सजा मिलनी चाहिए। ‘

    यह सुनकर मुल्ला और पुत्र ने सोचा कि ये लोग सही ही कह रहे हैं। ऐसा सोचकर दोनों नीचे उतर गए और गधे के साथ चलने लगे। तभी उन्हें उनके गाँव का एक व्यक्ति मिला।

    उसने इन्हें रोका और मुल्ला से बोला, “मुल्ला, क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है?”

    हड़बड़ाकर मुल्ला ने कहा, “नहीं तो, क्यों?”

    गाँव वाला बोला, “तुम गधे को बेकार ले जा रहे हो और पैदल चलकर खुद थक रहे हो। जब तुम आराम से गधे पर बैठ सकते हो तो फिर ऐसा क्यों कर रहे हो?”

    यह सुनकर मुल्ला सकते में आ गया। उसने सोचा कुछ भी काम करो लोग तो नासमझ ही कहेंगे।

    2. चक्के वाला चूल्हा (Short Story In Hindi For Class 10)

    एक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपनी रसोई में चूल्हा बना रहा था। चूल्हा करीब-करीब पूरा हो चुका था तभी उसके मित्र चूल्हा देखने आ पहुँचे।

    सबने बहुत तारीफ करी पर एक ने कहा, “मुल्ला, चूल्हा तो अच्छा है पर उसका मुँह उत्तर की ओर है। अगर उधर की हवा चली तो सारी आग उड़ जाएगी। “

    बात तो पते की थी। मुल्ला ने उसे तोड़कर दूसरा चूल्हा बनाया। इस बार चूल्हे का मुँह दक्षिण दिशा की ओर रखा।

    फिर अपने मित्रों को चूल्हा दिखाने के लिए बुलाया तो एक को छोड़कर सभी प्रसन्न हुए।

    एक मित्र ने कहा, “मुल्ला सब अच्छा है। चूल्हे का मुँह दक्षिण की ओर है। अगर उल्टी दिशा से वा चलेगी तो आग बाहर निकल जाएगी और तुम खाना नहीं पका पाओगे।’

    मुल्ला ने फिर से चूल्हा तोड़ डाला और नया चूल्हा पूर्व दिशा की तरपफ मुँह करके बनाया। फिर मित्र देखने आये।

    सबने अच्छा कहा पर एक मित्र ने कहा, “अति सुंदर, पर इसका मुँह, पूर्व दिशा की ओर है। कुछ महीनों में पूर्व दिशा से ही हवा चलती है तुम्हारे चूल्हे की आग उड़ा ले जाएगी।”

    परेशान होकर मुल्ला ने इस चूल्हे को भी तोड़ दिया। बहुत सोच विचार कर इस बार उसने नए चूल्हे के नीचे चक्का लग दिया जिससे उसे घुमाया जा सके और हवा के कारण आँच पर प्रभाव न पड़े।

    मुल्ला को स्वयं पर बड़ा गर्व महसूस हो रहा था । उसने अपने मित्रों को चूल्हा दिखाने के लिए बुलाया ।

    मित्र आए, चूल्हा देखा और जी भरकर तारीफ करी । एक मित्र ने कहा, “तुम्हारा चूल्हा तो बहुत अच्छा है। तुम्हारे साथ साथ हमारे लिए भी बहुत सुविधाजनक है।’

    मुल्ला ने अचरज से पूछा, “तुम्हारे लिए कैसे सुविधजनक है?” मित्र ने कहा, “मुल्ला, चूँकि इसे घुमाया जा सकता है तो इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। “

    “पर यह बताओ कि तुम्हारे लिए कैसे सुविधजनक है…” मुल्ला ने पूछा।

    अब मित्र ने कहा, “मुल्ला, बुरा न मानो तो क्या आज रात खाना पकाने के लिए तुम मुझे चूल्हा दे सकते हो ? कल सुबह वापस कर दूँगा । यही सोचकर मैंने कहा था कि मेरे लिए भी सुविधाजनक है”

    मुल्ला इंकार न कर सका। मित्र ने अगले दिन चूल्हा वापस कर दिया। मुल्ला अपनी पत्नी को खाना बनाने का निर्देश देकर काम पर चला गया।

    दोपहर को वापस आने पर उसने अपनी पत्नी को आँगन में चुपचाप बैठे देखकर पूछा, “क्या बात है ? खाना क्यों नहीं पकाया?” क्रोधित पत्नी ने कहा, “चूल्हे में चक्का लगाने का तुम्हारा विचार हमारे लिए विनाशका कारण बन गया है। “

    मुल्ला कुछ समझ न पाया। उसकी पत्नी ने फिर कहा “कल तुम्हारा मित्र चूल्हा अपने घर गया। पर आज मैं ताजी सब्जियाँ लेने बाजार गई थी तभी पीछे से कुछ चोर आए और आँगन में से चूल्हा उठाकर ले गए।”

    दुखी मुल्ला अपने आप को कोसने के अलावा कुछ न कर सका।

    3. तीन पंडित (Hindi Moral Stories For Class 10)

    एक बार की बात है… मुल्ला नसरुद्दीन सुलतान का सलाहकार था। तभी तीन व्यक्ति राजा के पास आए और स्वयं को संसार में सबसे चतुर और ज्ञानी बताने लगे।

    सुलतान ने उनका स्वागत किया और कहा, “पंडितों, आपने हमारे राज्य में पधारकर हमारा मान बढ़ाया है।

    हमारा आतिथ्य स्वीकारें और अपना ज्ञान हमें दें” तत्पश्चात् सुलतान ने उन पंडितों को अपने सलाहकारों के ज्ञान के विषय में बताया और उनकी प्रशंसा करी

    सुलतान की बातों से प्रसन्न पंडितों में से एक ने कहा, “महाराज, आपने अपने दरबारियों की बहुत प्रशंसा करी है ।

    कृपया, पहले हमें अपनी बुद्धि का परिचय देने दें। हममें से हर कोई एक प्रश्न पूछेगा। यदि कोई हमें उसका उत्तर देगा तो हम उसे सबसे बुद्धिमान् मानकर अपना गुरु बना लेंगे।

    सुलतान ने शर्त मान ली। उनके द्धारा पूछे गए प्रश्नों का कोई भी दरबारी सही-सही उत्तर न दे सका। सुलतान ने सोचा कि केवल मुल्ला ही इनके प्रश्नों का सही उत्तर दे सकता है। उन्होंने तुरंत दूत भेजकर मुल्ला को बुलवाया।

    मुल्ला अपने गधे पर बैठकर महल पहुँचा और झुककर सुलतान का अभिवादन किया।

    सुलतान ने मुल्ला का परिचय पंडितों से करवा कर कहा, “श्रीमान्, मुल्ला के समक्ष अब आप लोग अपना प्रश्न रखें। मुझे पूरा विश्वास है कि आप लोगों को सही उत्तर अवश्य मिलेगा।”

    एक ने मुल्ला से पूछा, “धरती का बीचोबीच मध्य कहाँ पर है?” मुल्ला प्रश्न पूछने वाले की चतुराई तुरंत समझ गया।

    उसने अपने गधे को दिखाते हुए कहा, “जहाँ मेरे गधे का पैर है वहीं धरती का मध्य है।’ “आप यह कैसे कह सकते है?” उस व्यक्ति ने पूछा।

    मुल्ला ने उत्तर दिया, “यदि आपको कोई शंका है तो आप नापकर देख लें कि बीचोबीच कहाँ आता है।”

    भौंचक्का सा वह व्यक्ति चला गया। दूसरे पंडित ने आकर पूछा, “मुल्ला, बताओ तो, हमारे सिर के ऊपर आसमान में कितने तारे है ?”

    मुल्ला ने शांतिपूर्वक कहा, “हूँ?… मेरे गधे के बाल जितने तारे हैं।’ ” “तुम्हें कैसे मालूम?” पंडित ने पूछा।

    मुल्ला ने उत्तर दिया, “श्रीमान्, यदि आपको कोई शंका हो तो गिन लीजिए”

    आश्चर्यचकित सा वह व्यक्ति भी चला गया। तीसरे पंडित ने आकर मुल्ला से पूछा, “बताओं, मेरी दाढ़ी में कितने बाल हैं?” मुल्ला ने उत्तर दिया, “ठीक उतने ही जितने मेरे गधे की पूँछ में है । “

    “तुम्हें कैसे पता” पंडित ने पूछा “।

    मुल्ला ने कहा, “यदि आपको कोई शंका है तो आइये गिन लेते हैं। आप दाढ़ी से एक बाल निकालिए और मैं गधे की पूँछ से एक बाल निकालूंगा”

    पंडित ने भयभीत होकर सुल्तान से कहा, “हे सुलतान ! हम अपनी हार स्वीकार करते हैं। हमसे भी बुद्धिमान् व्यक्ति आपके राज्य में हैं। आज से मुल्ला को हम लोग अपना गुरु स्वीकार करते हैं।

    4. प्रभु की मदद (Hindi Story For Class 10)

    मुल्ला नसरुद्दीन कभी भी एक जगह टिककर काम नहीं करता था। उसकी हाजिरजवाबी से ही उसका गुजारा चल जाता था। साथ ही सबकी सहायता करने के कारण वह अत्यंत लोकप्रिय था।

    मुल्ला के पड़ोसी गाँव में एक महाजन था जो लोगों को बहुत अधिक ब्याज पर पैसे उधार देता था। चूँकि पूरे गाँव में एकमात्र वही महाजन था इसलिए कोई कुछ बोल ही नहीं पाता था।

    उस महाजन को बस एक ही बात बुरी लगती थी कि मुल्ला ने कभी भी उससे उधार नहीं लिया था।

    वह हमेशा इसी ताक में रहता था कि मुल्ला उसका कर्जदार हो जाए और मुल्ला को यह बुरा लगता था कि वह साधरण लोगों से बहुत अधिक ब्याज लेता है।

    एक दिन महाजन को सीख देने का मौका मुल्ला को मिल ही गया। मुल्ला ने महाजन को छज्जे पर खड़ा देखा। उसे एक युक्ति सूझी।

    घुटनों पर बैठकर आकाश की ओर हाथ उठाकर जोर से उसने कहा, “हे प्रभु! मेरी मदद करें। मुझे परिवार चलाने के लिए पैसों की सख्त आवश्यकता है। मैं कभी उधार नहीं लेता । कृपया सौ सुवर्ण मुहर देकर मेरी सहायता करें। “

    महाजन तो ताक में था ही। उसने सौ सुवर्ण मुद्राओं का थैला नीचे गिरा दिया। उसने सोचा कि वह मुल्ला को बताएगा कि ईश्वर पैसा नहीं देते। मेरे जैसा महाजन ही पैसे देता है और मुल्ला भी मेरा कर्जदार हो जाएगा।

    मुल्ला ने थैला लेकर कहा, “बहुत बहुत धन्यवाद प्रभु, आपने मेरी प्रार्थना सुन ली।” महाजन मुल्ला की बात सुनकर

    चिढ़ गया। नीचे जाकर मुल्ला से उसने कहा, “मुल्ला, तुम कितने मूर्ख हो… तुम क्या समझते हो ईश्वर ने तुम्हारी मदद की है? यह जो पैसा तुम्हारे हाथ में है वह मेरा है।

    मेरे जैसे बड़े दिल वाला ही मदद कर सकता है। कोई बात नहीं तुम बाद में मुझे वापस कर देना । “

    मुल्ला ने तुरंत कहा, “तुम मुझे मूर्ख कह रहे हो? मैं तुम्हें भली-भांति जानता हूँ। ईश्वर ने मेरी मदद की है मुझे मूर्ख मत बनाओ।”

    महाजन की बात मुल्ला ने नहीं मानी। अंत में महाजन ने कहा, “ठीक है, अभी पता चल जाएगा कि कौन मूर्ख है। मेरे साथ काज़ी के पास चलो वही निर्णय करेगा ।

    ” मुल्ला तो यही चाहता था। उसने कहा, “ठीक है, चलूँगा पर देखो, मेरे पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं हैं। यदि अच्छे कपड़े में नहीं चलूंगा तो तुम नहीं जीतोगे इसलिए पहले मेरे कपड़े…’

    महाजन ने सोचा कि निर्णय तो मेरे ही पक्ष में होना है। कम से कम मुल्ला को अच्छे कपड़े दे देता हूँ… उसने अपने कपड़े दे दिए। इसी प्रकार मुल्ला ने महाजन से कोट, जूते और यहाँ तक कि घोड़े का भी इंतजाम करवा लिया।

    दोनों घोड़े पर सवार होकर काजी के पास पहुँचे । काजी को अपनी बात बताकर महाजन ने न्याय माँगा ।

    काजी ने बारी-बारी से दोनों को देखा और फिर मुल्ला से बोला, “तुम्हें कुछ कहना है क्या?” मुल्ला ने कहा, हुजूर, इस व्यक्ति की बुद्धि खराब हो गई है।

    जो कुछ भी मेरे पास है उसे यह अपना बताता है। यदि आप उससे पूछें कि मेरे कपड़े, जूते, घोड़े किसके हैं तो यह उसे भी अपना ही बताएगा।

    ऐसी स्थिति में स्वर्ण मुद्राओं के संबंध में भी आप उससे उसी उत्तर की अपेक्षा कर सकते हैं। “

    मुल्ला के कहे अनुसार काजी ने महाजन से पूछा। कपड़े जूते सब महाजन के थे ही तो उसे कहना पड़ा, “जी हुजूर, ये सब मेरे ही हैं। “

    काजी ने मुल्ला के पक्ष में अपना निर्णय दिया और अपनी मूर्खता के लिए महाजन स्वयं को दोष देता हुआ चला गया।

    5. किसका निशाना (Hindi Short Stories For Class 10)

    एक बार मुल्ला नसरुद्दीन के पड़ोसी गाँव में मेला लगा। कई महीनों से मुल्ला को इस मेले में जाने का मन था।

    वह वहाँ जाकर कुछ खेलों में अपनी किस्मत आजमाना चाहता था। मुल्ला के चेलों ने कहा कि वे भी साथ चलेगें। पर वह जानता था कि वह अपने चेलों के सामने खेलों में भागीदार नहीं बन सकता था ।

    उसको अपने चेलों के सामने हारने की भी चिन्ता थी। उसे डर था कि यदि वह हार गया तो उसके चेले उसे असमर्थ समझ कर उसका सम्मान करना छोड़ देंगे। वह किसी भी हालत में जीतना चाहता था।

    मेले में मुल्ला अपने चेलों के साथ चल दिया और उसने सोचा कि मेले में ही कुछ उपाय सोच लेगा ।

    मेले में बहुत सी दुकानें थीं उसमें से एक दुकान में तीर से निशाना मारने का खेल था। सही निशाना लगाने पर बहुत बढ़िया इनाम भी था।

    मुल्ला ज्यादा अनुभवी तो नहीं था पर वह निशाना लगाकर जीतना चाहता था । उसको यह भी डर था कि अगर निशाना सही नहीं लग पाया तो उसके चेले उसकी खिल्ली उड़ायेंगे।

    फिर उसने कुछ सोचा और तीर उठा कर अपने चेलों से कहा कि वह इस खेल के माध्यम से उन्हें कुछ व्यवाहारिक ज्ञान देगा।

    उसे लगा कि इस प्रकार यदि वह विफल भी हुआ तो भी वह अपने चेलों के सामने अपनी इज्ज़त बचा पाएगा।

    वे सब दुकान की ओर चल दिये, जहाँ मुल्ला को देखने के लिए भीड़ जुट गयी थी। यह मुल्ला के लिए पक्की चुनौती थी।

    उसने धनुष और तीन तीर उठाए और सब लोगों से कहा “अब मैं आपको जीवन के बारे में सिखाता हूँ। मुझे ध्यान से देखियेगा।”

    मुल्ला ने निशाना साधा और तीर छोड़ा पर निशाना स जगह न लगा। भीड़ ने अत्यंत निराशा प्रकट करते हुए आह भरी ।

    मुल्ला शान्त रहा और बोला “तीर मारते वक्त मैंने सोचा था कि मैं एक योद्धा हूँ। इसी कारण मेरा निशाना चूक गया।

    जब हम युद्ध में लड़ने जाते हैं तो निशाना चूक सकता है। यही वजह है कि हम युद्ध हार जाते हैं।

    फिर उसने दूसरा तीर उठाया और निशाने की ओर छोड़ा पर इस बार भी तीर निशाने से चूक गया। भीड़ ने फिर शोर मचाया।

    मुल्ला शांत मुद्रा में बोला “मैं आप लोगों को सिखाना चाहता था कि लक्ष्य पर अपना ध्यान केन्द्रित करना बहुत जरूरी होता है वरना निशाना सही जगह पर नहीं लगेगा।

    तीसरी और आखिरी बार मुल्ला ने फिर तीर साधा। इस बार तीर सही जगह पर लगा | अचूक निशाना देख भीड़ चिल्ला पड़ी और करतल ध्वनि से मुल्ला की सराहना की।

    अपनी इच्छा पूरी कर के मुल्ला घर की ओर चलने लगा और यह बताना भूल गया कि यह निशाना किसलिए साधा था।

    भीड़ ने मुल्ला नसरुद्दीन को शान्त देखकर पूछा “अबकी बार आपने यह निशाना किसके लिए लगाया ” ।

    मुल्ला ने मुस्कराते हुए कहा “यह निशाना तो मैनें अपने लिये लगाया। मित्र और बाकी एकत्रित लोग इस जवाब से सहमत हो गए और मुल्ला प्रसन्न, उसकी लाज जो रह गयी थी।

    6. चीनी की लत (Moral Story In Hindi For Class 10)

    एक बार की बात है। एक स्त्री मुल्ला के पास अपनी समस् लेकर पहुँची । उसके पुत्र को चीनी खाना बहुत पसंद था और वह इस आदत को छुड़ाना चाहती थी। उसने मुल्ला से कहा, ” श्रीमान्, मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि अपने पुत्र को कैसे अनुशासित करूँ । ‘

    मुल्ला ने उससे पूछा, “महोदया, कृपया मुझे बताएँ कि किस प्रकार का अनुशासन आप अपने पुत्र में देखना चाहती हैं, संभव है मैं आपकी कोई सहायता कर सकूँ…”

    उस स्त्री ने कहा, “श्रीमान् बहुत ही साधारण सी बात है। मेरे पुत्र को चीनी खाने की बहुत लत है। मैं समझ नहीं पा रही कि उसकी आदत कैसे छुड़ाऊँ…”

    पल भर सोचकर मुल्ला ने कहा, “महोदया, आप क मुझसे मिलें। मैं इस समस्या का समाधान बताऊंगा।

    अगले दिन उस स्त्री के आने पर मुल्ला ने फिर उसे अगले दिन आने के लिए कहा। एक सप्ताह तक यही चलता रहा। उसके बाद मुल्ला ने उससे कहा, “महोदया, कृपया कल आप अपने पुत्र को ‘आएँ। मैं उसे एक उपाय बताऊँगा।”

    अगले दिन उस बालक से मुल्ला ने कहा, “बालक! अधिक चीनी खाना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, तुम्हें इसे बदलना होगा। कल से एक दिन में तुम बस तीन चम्मच चीनी खाना और एक सप्ताह बाद मुझसे मिलना। ”

    बालक ने मुल्ला की बात मान ली। उस स्त्री ने मुल्ला का आभार व्यक्त दिया। एक सप्ताह पश्चात् दोनों आए पर मुल्ला ने उन्हें अगले सप्ताह आने के लिए कहा।

    दो सप्ताह तक यही क्रम चला। तत्पश्चात् मुल्ला ने बालक से कहा कि अब वह एक दिन में मात्र दो चम्मच चीनी खाए और मुल्ला से एक सप्ताह बाद मिले।

    उस स्त्री ने मुल्ला को धन्यवाद देते हुए पूछा कि उसके पुत्र को सलाह देने में उन्होंने इतना समय क्यों लगाया?

    मुल्ला ने उत्तर दिया, “महोदया, सच तो यह है कि आपके पुत्र को चीनी – खाने से अनुशासित करने से पहले मुझे स्वयं को अनुशासित करना पड़ा क्योंकि मुझे भी चीनी खाने की लत है। “

    7. कोट ने सूप पीया (Hindi Story Class 10)

    मुल्ला की ख्याति और सूझबूझ के कारण शहर का एक धनिक उन्हें अपने भोज में प्रमुख अतिथि के रूप में बुलाना चाहता था।

    सच पूछा जाए तो धनिक अपने मेहमानों के बीच अपने ठाट बाट को दिखाना चाहता था । उसने भोज के लिए मुल्ला को निमंत्रित किया जिसे मुल्ला ने स्वीकार कर लिया।

    भोज के दिन, समय से काफी पहले ही मुल्ला धनिक के शानदार महलनुमा घर में पहुँच गया। उसने बहुत ही साधरण कपड़े पहन रखे थे।

    पहरेदारों ने उसे फाटक पर ही रोककर पूछा कि वह कौन है? मुल्ला ने बताया कि वह भोज का मुख्य अतिथि है।

    मुल्ला का परिचय सुनते ही पहरेदार हँसते-हँसते दोहरे होने लगे और तरह-तरह से बोल बोल कर मुल्ला का अपमान करने लगे।

    धनिक भीतर अपने कक्ष से यह सब देख रहा था। उसने मुल्ला को भगा देने का निर्देश दिया।

    मुल्ला चला तो गया पर मन ही मन उस धनिक को सीख देने का उपाय भी सोचता रहा। उसे एक युक्ति सूझी। पास में उसका एक धनिक मित्र रहता था।

    मुल्ला उसके पास पहुँचा। मित्र मुल्ला से मिलकर बहुत प्रसन्न हुआ। गर्मजोशी से उसे गले लगाया। औपचारिकता के बाद धनिक मित्र ने मुल्ला से उसके आने का प्रयोजन पूछा।

    मुल्ला ने धनिक के फाटक पर घटी पूरी घटना मित्र को ताई। धनिक मित्र के पूछने पर कि किस प्रकार वह उसकी सहायता कर सकता है मुल्ला ने कहा, “मित्र, एक बार तुम मुझे एक सिल्क का कोट उपहार स्वरूप दिया था।

    जिसे मैंने   tब अस्वीकार कर दिया था, क्या वह तुम्हारे पास है?” मित्र ने कहा, “हाँ मुल्ला, वह तुम्हारा है और सदा तुम्हारा ही रहेगा।

    तुम्हारी सूझबूझ के लिए मैंने आदरस्वरूप वह तुम्हें भेंट दिया था।” यह कहकर धनिक मित्र ने वह सिल्क का कोट मुल्ला को दे दिया।

    मुल्ला ने उसे पहना और उसके साथ शोभित होने वाली चीजें भी पहनी। एक धनिक के रूप में लकदक वह मेजबान धनिक के घर पहुँचा।

    आश्चर्य की बात यह कि पहरेदार उसे पहचान न सके और उन्होंने झुककर लम्बा सलाम किया।

    धनिक ने स्वयं बाहर आकर गर्म जोशी से उसका स्वागत किया। उसने तो यहां तक कहा कि मुल्ला ने आकर उसका सम्मान बढ़ाया है।

    भोज शुरु होना था। सभी बैठे थे। तभी मुल्ला के सम्मान में धनिक ने घोषणा की, “ये हैं हमारे मुख्य अतिथि, सूझबूझ सर्वोत्तम, मुल्ला नसरुद्दीन । ”

    सभी ने सिर झुकाकर स्वागत किया। सबसे पहले सूप परोसा गया। सबकी आँखें मुल्ला पर केन्द्रित थीं ।

    उनके भोजन शुरु करने के पश्चात् ही शेष लोग शुरु करते। मुल्ला ने सूप का कप लिया, अपने स्थान पर खड़े हुए और सूप को उठाकर अपने कोट पर डाल दिया।

    सब आश्चर्यचकित उन्हें देखते ही रह गए। धनिक ने हड़बड़ाकर कहा, “अरे, यह आप क्या कर रहे हैं?”

    मुल्ला ने अपने कोट को प्यार से देखा और उससे कहा, “हे कोट! आशा है तुम्हें सूप अच्छा लगा होगा। यह तुम्हारे लिए ही था, जो कि आज का मुख्य अतिथि है, मैं नहीं।

    8. अनूठी हिंदी-निष्ठा (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    पंडित मदनमोहन मालवीय स्वदेशी, स्वभाषा और अपने देश की वेश-भूषा के प्रति अनन्य निष्ठा रखते थे। विदेशी भाषा अंग्रेजी की जगह हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किए जाने के लिए उन्होंने जीवन के अंतिम क्षणों तक प्रयास किया।

    वे हिंदी और संस्कृत के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा के भी अच्छे जानकार थे। इसके बावजूद वे हमेशा हिंदी का ही उपयोग किया करते थे । एक बार महामना को एक विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया ।

    उन्होंने पहले ही बता दिया था कि वे अंग्रेजी की पद्धति से गाउन पहनकर अंग्रेजी में भाषण नहीं देंगे, बल्कि अपनी प्राचीन वेशभूषा में ही आएँगे, जबकि उन दिनों दीक्षांत भाषण अंग्रेजी में देने की परिपाटी थी ।

    मालवीयजी ने जैसे ही हिंदी में बोलना शुरू किया कि एक विद्यार्थी खड़ा होकर बोला, ‘श्रीमान्, मैं आपकी भाषा नहीं समझ पा रहा हूँ। यूनिवर्सिटी में तो अंग्रेजी में ही भाषण दिया जाना चाहिए।’

    मालवीयजी उसकी बात सुनकर मुसकराए और अंग्रेजी में कहा, ‘मैं अंग्रेजी में भी अपनी बात रख सकता हूँ, किंतु मैंने अपने देश की जनभाषा हिंदी के प्रचार का संकल्प लिया है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।

    यहाँ मौजूद छात्रों में से अधिकांश हिंदी समझते हैं। अतः मैं हिंदी में ही बोलूँगा।’ उनकी बात सुनते ही प्रायः सभी छात्रों ने कहा, ‘महाराज, हिंदी में ही बोलिए, हम सब उसे ज्यादा सरलता से समझते हैं।’

    9. दिव्य प्रकाश (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    गुरु नानकदेवजी महाराज के पास एक जिज्ञासु पहुँचा। उसने विनम्रतापूर्वक कहा, ‘बाबा, भगवान् से साक्षात्कार के लिए कोई भक्ति करने को कहता है, तो कोई ज्ञान को साधन बताता है।

    आपकी दृष्टि में असली साधन क्या है?’ गुरुजी ने कहा, ‘अहंकार, पाखंड और आडंबर से दूर रहकर किसी भी साधन से ईश्वर की आराधना करके उसे पाया जा सकता है।

    निश्छल मन और पवित्र हृदय से की गई भक्ति स्वतः सफल होती है। ईश्वर के प्रति दृढ़ आस्था रखते हुए, सत्य पर अचल रहने और उनके नाम का स्मरण करके उसे सहज ही पाया जा सकता है।’ उन्होंने फिर कहा, ‘साहिब मेरा एको है, एको है भाई । ‘ यानी मेरा ईश्वर एक है। उन्होंने पग-पग पर एक ओंकार की उपासना पर बल दिया।

    गुरुजी अपने उपदेश में अकसर कहा करते थे कि अहंकार चाहे जाति का हो या धन का, पद का हो या ज्ञान का – वह मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। अहंकारी व्यक्ति का एक न एक दिन पतन अवश्य होता है। इसलिए आदमी को अपनी विनम्रता का परिचय देना चाहिए । उनका कहना था, ‘ईश्वर ही सत्य है । वह भयरहित और जन्म-मरण के बंधनों से मुक्त है।’

    गुरु नानकदेव ने देश के अनेक राज्यों में जाकर सदाचार और नाम भक्ति का प्रचार किया। तीर्थों में जाकर वे श्रद्धालुओं को अंधविश्वास और गलत मान्यताओं को त्यागने की प्रेरणा देते थे। आज पूरा संसार उनके उपदेशों से प्रेरणा ले रहा है ।

    10. धर्मयुद्ध का आह्वान (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    7 मार्च, 1930 की बात है। नमक सत्याग्रह के माध्यम से राष्ट्रीय जागरण का आह्वान किया जा रहा था। सरदार वल्लभभाई पटेल गुजरात के एक नगर में पहुँचे। उन्होंने अपने कुछ परिचितों से संपर्क किया ।

    उन लोगों ने उनसे कहा, ‘हम लोग धर्म-कर्म और अहिंसा में विश्वास रखते हैं। यदि इस आंदोलन में मार-धाड़ और हिंसा शुरू हो गई, तो व्यर्थ में हमारा व्यापार ठप्प पड़ जाएगा।’

    सरदार पटेल ने उनसे कहा, ‘मैं कुछ समय बाद होने वाली सभा में आपकी शंका का समाधान करूँगा।’ सभा में पटेल ने कहा, ‘गुजरात में भगवान् श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है।

    उन्होंने हमेशा अन्याय और शोषण को अधर्म मानकर उसके विरुद्ध सतत संघर्ष करने की प्रेरणा दी थी। उन्होंने कहा था कि अन्याय व अत्याचार सहना भी घोर अधर्म है ।

    अंग्रेज हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं। हमारी मातृभूमि को गुलाम बनाए हुए हैं। ऐसी स्थिति में भगवान् श्रीकृष्ण के प्रत्येक भक्त का दायित्व है कि वह विदेशी सत्ता को उखाड़ फेंकने में सक्रिय हो ।’

    उन्होंने आगे कहा, ‘मातृभूमि के लिए संघर्ष ही असली धर्मयुद्ध होगा। अंग्रेजों की आसुरी शक्ति से संघर्ष करना हमारी पूजा-उपासना का अंग है। दूसरे राज्यों की तरह गुजराती भी इस धर्मयुद्ध में आगे रहेंगे। ‘

    सरदार के ओजस्वी भाषण ने जादू का काम किया। सैकड़ों गुजराती नमक कानून तोड़ने घरों से निकल पड़े। अंग्रेजों ने वल्लभभाई पटेल को गिरफ्तार कर तीन माह के लिए जेल भेज दिया।

    11. अहंकार-त्याग ही मोक्ष है (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    महान् भागवताचार्य स्वामी अखंडानंद सरस्वतीजी महाराज कर्णवास (उत्तर प्रदेश) में गंगातट पर आश्रम में ठहरे हुए थे। सिद्ध संत उड़ियाबाबा भी वहीं साधना कर रहे थे।

    एक जिज्ञासु उनके पास पहुँचा। उसने विनम्रता से प्रश्न किया, ‘महाराज, मोक्ष का साधन बताने की कृपा करें । ‘ स्वामीजी ने कहा, ‘इसके लिए पहले यह जानना जरूरी है कि किस बंधन से हम मोक्ष चाहते हैं। हर व्यक्ति अलग अलग तरह के बंधनों में जकड़ा हुआ है।’

    स्वामीजी ने समझाते हुए कहा, ‘आदमी पग-पग पर राग, मोह, लिप्सा, नासमझी, अहंकार आदि न जाने कितने बंधनों में जकड़ा रहता है। उसे यह महसूस नहीं होता कि ये बंधन मुक्त करने के बजाय उसे और सख्ती से जकड़ रहे हैं।

    हम सांसारिक सुख-सुविधाओं की आकांक्षा में ज्यादा-से ज्यादा धन अर्जित करने का प्रयास करते हैं। यह अपने को बंधन में जकड़ने का प्रयास ही तो है। अज्ञान और सुख सुविधा भी तो बंधन ही हैं।

    अपने को औरों से बड़ा समझने और दूसरों को नीचा समझने का भ्रम – ये सब बंधन ही तो हैं। सबसे बड़ा बंधन तो अहंकार होता है । जिसने इसका त्याग कर दिया, समझो कि वह मुक्ति का रास्ता पा चुका है।’

    स्वामीजी ने कुछ देर रुककर कहा, ‘शरीर की जगह मानव जिस दिन आत्मा का महत्त्व जान जाएगा, वह ब्रह्मज्ञानी हो जाएगा। ब्रह्मज्ञान प्राप्त होते ही उसके समस्त बंधन स्वतः कट जाएँगे। ‘

    12. मुझे महंत नहीं बनना (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    स्वामी दयानंद सरस्वती ने युवावस्था में बद्रीनाथ केदारनाथ के पर्वतीय क्षेत्रों का भ्रमण किया था। इस यात्रा में एक दिन वे टिहरी पहुँचे। उनके तेजस्वी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वहाँ के एक प्रतिष्ठित विद्वान् ने उन्हें अपने घर भोजन के लिए निमंत्रित किया।

    वे उसके घर पहुँचे, तो देखा कि एक व्यक्ति बकरे का मांस काट रहा है । वे वापस लौटने लगे, तो गृहस्वामी ने रुकने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, ‘मैं मांसाहारी के घर भोजन नहीं कर सकता।’ यह कहकर वे वापस लौट आए ।

    गुप्तकाशी में वे ओखी मठ में ठहरे। मठ का महंत उनसे बातचीत कर समझ गया कि यह तेजस्वी युवक विद्वान् है। उसने एक दिन स्वामीजी से कहा, ‘तुम हमारे शिष्य बन जाओ। हमारे इस मठ के पास अपार भूमि और धन-संपदा है।

    आगे चलकर तुम इसके स्वामी बन जाओगे।’ स्वामीजी ने कहा, ‘यदि मुझे किसी मठ या संपत्ति का मालिक बनने की लालसा होती, तो मैं अपने माता-पिता, बंधु-बांधव और घर आदि क्यों छोड़ता ?’

    महंत ने पूछा, ‘तो फिर क्या पाने के लिए घर छोड़ा है ? ‘ उन्होंने उत्तर दिया, ‘सत्य, विद्या, योग, मुक्ति, आत्मा आदि का रहस्य जानने के लिए मैंने घर छोड़ा है। मैं हिमालय में सच्चे योगियों-साधुओं की तलाश में आया हूँ।’

    इसके अगले दिन स्वामीजी सवेरे चुपचाप उठे और जोशीमठ जा पहुँचे। उन्होंने अपनी उस यात्रा में अनेक पाखंडी तांत्रिकों और निरीह पशु-पक्षियों की बलि देने वालों का डटकर विरोध किया।

    13. माँ की निर्भीकता (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    माँ शारदा उन दिनों जयरामबटी स्थित अपने पीहर में रह रही थीं। उनकी इच्छा हुई कि गाँव से कोलकाता जाकर गंगा स्नान तथा पति स्वामी रामकृष्ण परमहंस के दर्शन किए जाएँ।

    कुछ ग्रामीण गंगास्नान के लिए जा रहे थे, अतः माँ शारदा भी कुछ महिलाओं के साथ पैदल रवाना हो गईं। रास्ते में तेलो-मेलो नामक स्थान पड़ता था, जहाँ बागदी डाकू राह चलते यात्रियों को लूट लेते थे।

    माँ शारदा विश्राम के लिए एक वृक्ष के नीचे बैठी ही थीं कि अचानक तीन-चार डाकुओं ने उन्हें घेर लिया। एक ने कड़कती आवाज में पूछा, ‘कहाँ की रहने वाली हो? तुम्हारे पास जो सामान हो, सामने रख दो । ‘

    माँ शारदा देवी काली की परम भक्त थीं। भला वे क्यों भयभीत होतीं। उन्होंने हँसते हुए कहा, ‘पिताजी, मैं जयरामबाटी के रामचंद्रजी की बेटी हूँ। आपके जंवाई दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के पुजारी हैं। उनके पास जा रही हूँ।’

    सरदार को ‘पिताजी’ शब्द ने झकझोर डाला। वह उन्हें अपने घर ले गया और पत्नी से बोला, ‘हमारी कोई संतान नहीं है। भगवान् ने हमें यह सुंदर पुत्री दी है । ‘

    कुछ देर आराम करने के बाद माँ शारदा ने कहा, ‘बाबा, यदि मैं कोलकाता नहीं पहुँची, तो आपके जंवाई चिंता में पड़ जाएँगे। मुझे जल्दी से जल्दी वहाँ पहुँचवा दीजिए । ‘

    बागदी ने कहारों से पालकी मँगवाई । हरे मटर, चिवड़ा व बताशे विदाई में दिए और स्वयं पालकी के साथ मंदिर तक पहुँचाने गया। इस घटना से बागदी का हृदय परिवर्तन हो गया, उसने डाका डालना छोड़ खेती करना शुरू कर दिया।

    14. सेवा ही सच्चा धर्म है (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    पूर्वी बंगाल में जनमे स्वामी प्रणवानंदजी ने 1913 में गोरखपुर पहुँचकर 17 वर्ष की आयु में गोरखनाथ संप्रदाय के आचार्य योगी गंभीरनाथजी से दीक्षा ली । गुरु ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा, ‘अपना जीवन धर्म-साधना के साथ साथ पीडितों एवं अभावग्रस्तों की सेवा में लगाना।’

    स्वामीजी एक बार अपने स्वर्गीय पिता का पिंडदान करने तीर्थ गए। पंडों के वेश में कुछ अपराधी किस्म के लोगों को उन्होंने श्रद्धालुओं का उत्पीड़न करते देखा। उन्होंने उसी समय संकल्प लिया कि वे तीर्थस्थलों की पवित्रता बनाए रखने के लिए अभियान चलाएंगे।

    आगे चलकर ‘भारत सेवा आश्रम संघ’ का गठन करके उन्होंने तीर्थस्थलों की पवित्रता बनाए रखने का अभियान चलाया और पाखंडियों का बहिष्कार कराया।

    वर्ष 1921 में तत्कालीन बंगाल के खुलना में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। स्वामी प्रणवानंद अन्य तमाम कार्य बीच में छोड़ अपने शिष्यों के साथ पीड़ितों की सेवा में जुट गए ।

    उन्होंने सार्वजनिक आह्वान किया, ‘आज पीड़ितों की सेवा से बढ़कर दूसरा कोई धर्म नहीं है। इसी तरह, उड़ीसा और पूर्वी बंगाल में बाढ़ आने का समाचार मिलते ही वे वहाँ पहुँचे और पीड़ितों की सेवा की ।

    आगे चलकर उन्हें ‘युगाचार्य’ के रूप में मान्यता मिली। उन्होंने सेवा संघ के सम्मेलन में घोषणा की, ‘शिक्षा का प्रचार-प्रसार करो, किंतु संस्कारों पर विशेष ध्यान दो पूजा उपासना तभी सफल होगी, जब मानव का आचरण शुद्ध होगा। जिसकी कथनी-करनी एक नहीं है, वह किसी को क्या प्रेरणा देगा?’

    15. संत की विनम्रता (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    ब्रह्मनिष्ठ संत स्वामी दयानंद गिरि शास्त्रों के प्रकांड ज्ञाता थे। वे अकसर कहा करते थे कि धर्मशास्त्रों का सार यही है कि मनुष्य हर प्रकार के अभिमान से दूर रहकर सदैव विनम्रता का व्यवहार करे।

    एक बार स्वामीजी नाथद्वारा ( राजस्थान) पहुँचे। श्रीनाथजी के दर्शन के बाद वे भिक्षा (भोजन) प्राप्त करने मंदिर के भंडारे में पहुँचे। वहाँ भोजनालय का प्रबंधक किसी से कह रहा था, ‘आज बरतन साफ करनेवाला कर्मचारी नहीं आ पाया है। ऐसी स्थिति में क्या होगा?’

    स्वामीजी ने जैसे ही यह सुना, वे जूठे बरतन साफ करने में जुट गए। भंडारे का व्यवस्थापक और अन्य संतगण उनकी सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए।

    उसी शाम मंदिर के सभागार में विद्वानों के बीच संस्कृत में शास्त्र चर्चा का आयोजन था। इसमें अनेक संत और विद्वान् भाग ले रहे थे। स्वामी दयानंद गिरि एक कोने में जा बैठे।

    उन्होंने चर्चा के बीच में खड़े होकर विनयपूर्वक कहा, ‘आप लोग प्रश्न का उच्चारण ठीक ढंग से नहीं कर रहे । ‘ उन्होंने शुद्ध उच्चारण भी बता दिया।

    मंदिर समिति के अध्यक्ष ने देखा कि यह तो वही संत है, जो थोड़ी देर पहले जूठे बरतन साफ कर रहा था, तो वह हतप्रभ रह गया। जब उसे पता चला कि वह स्वामी दयानंद गिरिजी महाराज हैं, तो वह उनके चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा।

    स्वामीजी ने कहा, ‘मैंने श्रीनाथजी के भक्तों के जूठे बरतन धोकर अपने पूर्व जन्म के संचित पापों को ही धोया है। साधु के लिए कोई भी काम बड़ा-छोटा नहीं होता। उसे तो सेवा करने को तत्पर रहना चाहिए । ‘

    16. अहंकार त्यागो (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    संतश्री डॉ. चतुर्भुज सहायजी प्रायः अपने प्रवचन में कहा करते थे कि साधु बनकर साधना करनेवाला आसानी से आत्मोद्धार नहीं कर सकता, जबकि गृहस्थ सहज ही कल्याण का रास्ता निकालकर भगवान् की कृपा प्राप्त कर सकता है।

    एक दिन एक व्यक्ति उनके पास पहुँचा। उसने कहा, ‘महाराज, मैं उच्च शिक्षा प्राप्त हूँ। मैंने अनेक धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया है। मेरी पत्नी और बच्चे हैं, किंतु मुझे लगता है कि गृहस्थी के प्रपंच में फँसे रहकर मैं अपने जीवन को सार्थक नहीं कर सकता ।

    कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। ‘ संतश्री ने कहा, ‘ज्ञान और साधना का रास्ता इतना आसान नहीं है, जितना तुम समझ रहे हो । ज्ञानी या संत होने का अहंकार दिनोदिन बढ़ता है।

    आदमी गृहस्थी में रहकर यदि सत्कर्म और संयम का पालन करता हुआ ईश्वर भक्ति में लगा रहे, तो उसका सहज ही कल्याण हो सकता है। गृहस्थ जीवन में आने वाली समस्याएँ मनुष्य को मिथ्या अहंकार से मुक्त रखती हैं। यह मिथ्या अहंकार ही जीव को

    प्रभु से दूर रखता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘दुर्व्यसनों का पूर्ण त्याग किए बिना ईश्वर के दरबार तक पहुँचना अत्यंत कठिन है। जो भी व्यक्ति अपने दुर्गुणों और अहंकार का त्याग कर शरणागत होता है, उसे प्रभु स्वयं ही पवित्र बना देते हैं।

    इसलिए गृहस्थी में रहते हुए भी साधना ध्यान करते रहो । मंगलमय परिवार को छोड़कर जंगल में भागने से कुछ नहीं मिलेगा।’ जिज्ञासु की समस्या का समाधान हो गया।

    17. अनूठा वशीकरण मंत्र (Moral Stories in Hindi for Class 10)

    आध्यात्मिक विभूति पंडित मिहीलालजी की वाणी इतनी मधुर व प्रभावी थी कि जो कोई उनके सत्संग में आता, वह उनकी प्रेरणा से समाज सेवा करने लगता। वे अकसर कहते थे कि जो कड़वा सुनकर भी मीठा बोलता है, वही सच्चा संत है। जो निंदा और आलोचना सुनकर क्रोधित नहीं होता, वही सफल गृहस्थ है।

    एक बार मिहीलालजी टूंडला (उत्तर प्रदेश) प्रवास पर थे। एक व्यक्ति उनके सत्संग के लिए आया। उसने सुन रखा था कि पंडितजी वशीकरण मंत्र जानते हैं। उस व्यक्ति का पड़ोसियों से विवाद था।

    उसने सोचा कि यदि पंडितजी वशीकरण मंत्र दीक्षा में दे देंगे, तो वह सभी को जीत लेगा । उस श्रद्धालु ने पंडितजी का चरण स्पर्श किया और कहा, ‘महाराज, क्या आप वशीकरण मंत्र जानते हैं और उसकी जाप-विधि मुझे बता सकते हैं?’ पंडितजी ने हामी भरी, तो वह हर्षित हो उठा।

    पंडितजी ने कहा, ‘भैया, मैं सबसे मीठा बोलता हूँ। किसी की बात व्यर्थ में नहीं काटता। धैर्य से सबकी सुनता हूँ। हृदय से सबका भला चाहता हूँ। यही वशीकरण मंत्र है।

    तुम इसका पालन करो। यह तुरंत प्रभावी चमत्कार दिखाएगा।’ पंडितजी ने आगे कहा, ‘जिसमें सहनशक्ति होती है, जो किसी की निंदा या आलोचना नहीं करता, असहायोें की सेवा के लिए तत्पर रहता है, बड़ों का आदर करता है, तो लोग स्वतः उसके हितैषी बन जाते हैं। भगवान् भी उसके वश में हो जाते हैं।’ जिज्ञासु का समाधान हो गया।

    18. चतुर अर्जुन (In Hindi Moral Short Story For Class 10)

    एक दिन अर्जुन और उसका छोटा भाई करण दोनों घर में अकेले थे। उनके पिताजी एक पुलिस अधिकारी थे। वे एक लाल रंग की फाइल घर लाए थे। उसमें सभी कुख्यात आतंकवादियों के बारे में जानकारी थी।

    अर्जुन जानता था कि पापा ने वह फाइल एक अलमारी में सुरक्षित रखी हुई है। अर्जुन और करण खेल रहे थे कि तभी दो आतंकवादी उनके घर में घुस आए और बोले, “लाल फाइल कहाँ है?” अर्जुन बड़ा चालाक था।

    वह बोला, “शयनकक्ष की अलमारी में ऊपर रखी गई है। मैं वहाँ तक नहीं पहुँच सकता।” दोनों आतंकवादी लाल फाइल को हासिल करने के लिए उस कमरे में गए। जब वे अलमारी में फाइल ढूँढ रहे थे,

    तब अर्जुन ने धीरे-से उस कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और पिताजी को भी फोन कर दिया जल्दी ही उसके पिताजी पुलिस लेकर वहाँ पहुँच गए।

    दोनों आतंकवादियों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस प्रकार अर्जुन ने अपनी चतुराई से दोनों आतंकवादियों को पकड़वा दिया। सभी ने उनकी खूब सराहना की।

    19. भेड़िए की योजना (Story In Hindi For Class 10)

    एक बार पूरे देश में सूखा पड़ गया। बारिश के अभाव में सभी नदी-नाले सख गए। कहीं पर भी अन्न का एक दाना नहीं उपजा। बहुत से जानवर भूख और प्यास से मर गए। पास ही के जंगल में एक भेड़िया रहता था।

    उस दिन वह अत्यधिक भूखा था। भोजन न मिलने की वजह से वह बहुत दुबला हो गया था। एक दिन उसने जंगल के पास स्थित चरागाह में भेड़ों का झुंड देखा। चरवाहा उस समय वहाँ पर नहीं था।

    वह अपनी भेड़ों के लिए पीने के पानी की बाल्टियाँ भी छोड़कर गया था। भेड़ों को देखकर भेड़िया खुश हो गया और सोचने लगा, ‘मैं इन सब भेड़ों को मारकर खा जाऊँगा और सारा पानी भी पी जाऊँगा।

    फिर वह उनसे बोला, “दोस्तो, मैं अत्यधिक बीमार हूँ और चलने-फिरने में असमर्थ हूँ। क्या तुम में से कोई मुझे पीने के लिए थोड़ा पानी दे सकता है।” उसे देखकर भेड़ें सतर्क हो गई। तब उनमें से एक भेड़ बोली,

    “क्या तुम हमें बेवकूफ समझते हो? हम तुम्हारे पास तुम्हारा भोजन बनने के लिए हरगिज नहीं आएँगे।” इतना कहकर भेड़ें वहाँ से भाग गई।

    इस प्रकार भेड़ों की सतर्कता के कारण भेड़िए की योजना असफल हो गई और बेचारा भेड़िया बस हाथ मलता ही रह गया।

    20. बेवकूफ भेड़िया (Short Story In Hindi)

    एक दिन एक छोटा मेमना जंगल के किनारे स्थित चरागाह में चर रहा था। अचानक एक भेड़िए की निगाह उस पर पड़ी। वह उसे देखकर सोचने लगा, ‘वाह! आज तो ठीक भोजन के समय ही मुझे मेरा शिकार मिल गया।

    में इसे किसी भी तरह खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।’ यह सोचकर भेड़िया तेजी से दौड़ा और उसने मेमने को पकड़ लिया। वह उसे खाने ही वाला था कि तभी मेमना बोला, “मुझे खाने से पहले मेरी अंतिम इच्छा पूरी करने की कृपा करो।”

    भेड़िया उसकी बात मान गया और बोला, “तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है?” वह बोला, “मैं चाहता हूँ कि तुम बाँसुरी बजाओ और मैं उसकी धुन पर नृत्य करूँ। नृत्य करते-करते जब मैं थक जाऊँगा, तब तुम मुझे खा लेना।”

    भेड़िया मान गया और उसने बाँसुरी बजाना शुरू की। तब मेमने ने उसकी धुन पर नृत्य करना प्रारंभ किया। बांसुरी की आवाज सुनकर कुछ भेड़ें वहाँ पर आ गई।

    भेड़िए के समीप छोटे से मेमने को देखते ही उन्होंने भेड़िए के ऊपर धावा बोल दिया। भेड़िया किसी तरह अपनी जान बचाकर भागा।

    उसने सोचा, ‘मैं भी कितना बेवकूफ हूँ। क्यों मैंने अपने आप को संगीतज्ञ समझ लिया? यह मेरे लिए ही परेशानी का कारण बना।’

    21. मेहनत की कमाई (In Hindi Stories For Class 10)

    सोनू एक आलसी लड़का था। वह अपना समय यूँ ही आवारागदी करने में व्यतीत करता था। इस कारण वह हमेशा कार्य करने से जी चुराता था। एक दिन उसे पैसों से भरा एक थैला मिला।

    वह अपने भाग्य पर बहुत खुश हुआ। वह यह सोच-सोचकर खुश हो रहा था कि उसे बिना प्रयास के ही इतने सारे पैसे मिल गए। सोनू ने कुछ पैसों से मिठाई खरीदी, कुछ पैसों से कपड़े व अन्य सामान खरीदा।

    इस प्रकार उसने पैसों को व्यर्थ खर्च करना प्रारंभ कर दिया। तब उसकी माँ बोली, “बेटा, पैसा यूँ बर्बाद न करो। इस पैसे का उपयोग किसी व्यवसाय को शुरू करने में करो।” सोनू बोला, “माँ मेरे पास बहुत पैसा है।

    इसलिए मुझे कार्य करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।” धीरे-धीरे सोनू ने सारा पैसा खर्च कर दिया अब उसके पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी।

    इस तरह वह एक बार फिर अपनी उसी स्थिति में आ गया। सोनू को एहसास हुआ कि यदि उसने वह धन परिश्रम से कमाया हुआ होता तो उसने अवश्य उसकी कद्र और उपयोगिता समझी होती।

    22. दिवास्वप्न (Short Moral Story In Hindi For Class 10)

    एक प्रसिद्ध ज्योतिषी था। वह हमेशा सूर्य-चन्द्रमा.ग्रह-नक्षत्रों की दशा देखकर लोगों का भविष्य बताने में व्यस्त रहता था। कभी-कभी तो वह चलते हुए भी आकाश को देखने में इतना व्यस्त रहता कि उसे होश ही नहीं रहता था कि उसके कदम कहाँ पड़ रहे हैं।

    एक दिन वह अन्य दिनों की तरह आकाश को देखता हुआ चला जा रहा था। उसे रास्ते में पड़ा एक बड़ा पत्थर नहीं दिखा। उसे जोर की ठोकर लगी और वह कंटीली झाड़ियों में जा गिरा।

    कुछ राहगीरों ने उठने में उसकी सहायता की। उन्होंने ज्योतिषी से पूछा, “तुम इन कंटीली झाड़ियों में कैसे गिर गए?” तब ज्योतिषी ने उन्हें पूरा घटनाक्रम सुना दिया। उनमें से एक राहगीर बोला,

    “तुम भविष्यवाणी करते हो, किंतु तुम्हारी आँखों के सामने क्या है, ये तुम्हें दिखाई नहीं देता, ये बड़े आश्चर्य की बात है। तुम्हें सपनों की दुनिया से बाहर निकलकर वास्तविक दुनिया में जीना चाहिए।”

    यह सुनकर ज्योतिषी को बड़ी शर्म महसूस हुई और उसने ये सबक पूरी जिदगी याद रखा।

    23. सबक (For Class 10 Short Story In Hindi)

    एक समय की बात है। एक आश्रम में रवि नाम का एक शिष्य रहता था। वद बहुत अधिक नटखट था। वह प्रत्येक रात आश्रम की दीवार फॉँदकर यहाँ-व और बाहर जाने की बात कोई नहीं जानता।

    सुबह होने से पहले लौट आया। वह सोचता था कि उसके आश्रम से घूमता लेकिन उसके गुरुजी यह बात जानते थे। वे रवि को रंगे हाथ पकड़ना चाहते थे। एक रात हमेशा की तरह रवि सीढ़ी पर चढ़ा और दीवार फॉदकर बाहर कूद गया।

    उसके जाते ही गुरुजी जाग गए। तब उन्हें दीवार पर सीढ़ी लगी दिखाई दी। कुछ घंटे बाद रवि लौट आया और अंधेरे में दीवार पर चढ़ने की कोशिश करने लगा। उस वक्त उसके गुरुजी सीढ़ी के पास ही खड़े थे।

    उन्होंने रवि की नीचे उतरने में मदद की और बोले, “बेटा, रात में जब तुम बाहर जाते हो तो तुम्हें अपने साथ एक गर्म साल अवश्य रखनी चाहिए।

    गुरुजी के प्रेमपूर्ण वचनों का रवि पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी। साथ ही उसने गुरु को ऐसी गलती दोबारा न करने का वचन भी दिया।

    24. चालाक चिड़िया (Short Story In Hindi)

    एक व्यक्ति ने अपने पालतु चिड़ियों के लिए एक बड़ा-सा पिंजड़़ा बनाया उस पिंजरे के अंदर चिड़िया आराम से रह सकती थीं। वह व्यक्ति प्रतिदिन उन चिड़ियों को ताजा पानी और दाना देता।

    एक दिन उस व्यक्ति की अनुपस्थिति में एक चालाक बिल्ली डॉक्टर का वेश धारण कर वहाँ पहुँची और बोली, “मेरे प्यारे दोस्तो पिंजड़े का दरवाजा खोलो। मैं एक डॉक्टर हूँ और तुम सब के स्वास्थ्य परीक्षण के लिए यहाँ आई हूँ।”

    समझदार चिड़ियाएँ बिल्ली की चाल को तुरंत समझ गईं। वे उससे बोली, “तुम हमारी दुश्मन बिल्ली हो। हम तुम्हारे लिए दरवाजा हरगिज नहीं खोलेंगे। यहाँ से चली जाओ।” तब बिल्ली बोली,

    “नहीं, नहीं। मैं तो एक डॉक्टर हूँ। तुम मुझे गलत समझ रहे हो। मैं तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाऊँगी। कृपया दरवाजा खोल दो।”

    लेकिन चिड़िया उसकी बातों में नहीं आई। उन्होंने उससे स्पष्ट रूप से मना कर दिया। आखिरकार मायूस होकर बिल्ली वहाँ से चली गई।

    25. जिंदगी का आनंद ( Hindi Moral Story)

    एक दिन रोहित मोहित से मिला। उसने मोहित से पूछा, “मोहित, जिंदगी कैसी चल रही है? तुम तो बड़े खुश नजर आ रहे हो।” मोहित बोला, “हाँ, अभी कुछ समय पहले मेरी शादी हो गई।”

    रोहित बोला, “वाह! ये तो बड़ी अच्छी खबर है। मुबारक हो।” मोहित बोला, “धन्यवाद। वैसे मुझे मुबारकबाद की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मुझे एक काली एवं भद्दी पत्नी मिली जो कि मुझे पसंद नहीं आई।”

    रोहित ने दुखी स्वर में कहा, “अरे यार, मुझे पता नहीं था।” “नहीं, नहीं, मुझे किसी बात का दुख नहीं है, क्योंकि मुझे दहेज में एक बड़ा बंगला भी तो मिला,” मोहित ने खुशी-खुशी कहा।

    रोहित बोला,”मोहित तुम बड़े किस्मत वाले हो।” “नहीं यार, ऐसा भी नहीं है। दरअसल हुआ यह कि उस बंगले में आग लग गई और बंगला जलकर राख हो गया।” मोहित ने रोहित से कहा।

    रोहित ने दुखी स्वर में कहा, “अरे! ये तो वास्तव में बड़ी बुरी खबर है।” मोहित बोला, “नहीं, मैं बंगले के जलने पर खुश हूँ, क्योंकि उसमें मेरी बीवी भी थी। वह भी आग में जलकर मर गई।”

    रोहित ने दोनों हाथों से अपना सिर थाम लिया और सोचने लगा, ‘मोहित, तुम कभी भी जिंदगी का आनंद लेने से नहीं चूकोगे।’

    26. जादुई बर्तन (Short Story For Students of Class 10 In Hindi)

    एक दिन एक किसान एवं उसकी पत्नी खेत जोतकर उसमें बीज बो रहे थे जब वे खेत में हल चला रहे थे. तभी हल से कुछ टकराया। उन्होंने देखा तो वह ताँबे का एक बड़ा-सा खाली बर्तन था।

    वे उस बर्तन को घर ले आए। रास्ते में उन्होंने बर्तन में हल रख दिया। जब वे घर पहुँचे तो उन्होंने बर्तन को देखा। बर्तन के अन्दर दो हल देखकर वह दोनों आश्चर्यचकित रह गए। उसकी पत्नी बोली,

    “मुझे लगता है. यह एक जादुई बर्तन है हम इस बर्तन में जो कुछ भी रखेंगे, वह दोगुना हो जाएगा।” अब किसान ने बर्तन के अन्दर पैसे रख दिए और वे दोगुने हो गए फिर उसने और पैसे रखे, वे भी दोगुने हो गए।

    अब तो वे दोनों पैसे पर पैसा बनाने लगे। अगले दिन बदकिस्मती से किसान की पत्नी पैर फिसलने के कारण उस बर्तन में जा गिरी। किसान ने उसे बाहर निकाला, परन्तु अब उस बर्तन में एक पत्नी और थी।

    उसने दूसरी पत्नी को भी बाहर निकाला। जादुई बर्तन के कारण वह व्यक्ति बड़ी मुसीबत में फँस गया था। किसी ने ठीक ही कहा है कोई चीज लाभदायक होने के साथ हानिकारक भी हो सकती है।

    27. चौकीदार कुत्ता (In Hindi Short Story For Class 10)

    एक किसान के पास भेड़ों का एक झुंड था। किसान अपनी भेड़ों को एक भेड़िए से बचाने का बड़ा प्रयास करता, लेकिन असफल रहता। भेड़िया सिर्फ एक भेड़ को छोड़कर अब तक उसकी सारी भेड़ों को खा चुका था।

    एक दिन किसान अपनी पत्नी से बोला, “मैं इस आखिरी भेड़ को बेच दूंगा।” भेड़ किसान की यह बात सुनकर सोचने लगी, इस कसाई के हाथों मारे जाने से बेहतर है कि मैं आजाद रहूँ।’

    इसलिए भेड़ चौकीदार कुत्ते को साथ लेकर रात को वहाँ से चली गई। तभी भेड़िए की निगाह उन पर पड़ी। वह भेड़ को अपना भोजन बनाना चाहता था, परन्तु कुत्ते की उपस्थिति में यह संभव नहीं था।

    इसलिए वह भेड़ से बोला, “हे भेड़! यहाँ आओ मैं तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ।” कुत्ता भेड़िए की मंशा भाँप गया। कुत्ते ने पास के ही पेड़ के नीचे एक शिकंजा लगा देखा।

    अत: वह बोला, “यदि तुम उस पवित्र पेड़ को छू लोगे तो हम तुम पर विश्वास कर लेंगे।” भेड़िया जैसे ही पेड़ को छूने गया, वह शिकंजे में फँस गया। अब किसान की भी समस्या हल हो गई। वह खुशी-खुशी भेड़ और कुत्ते को वापस ले आया।

     

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